है कौन गुनाहगार यहां
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भोली भाली सी घरेलु मैं लड़की सीधी साधी थी,
दिन भर मैं यूं बोर न हो तो कुछ लिखने पढ़ने की आदी थी ।
लिखती थीं मैं भी कविताएं ऐसे ही मंच पर,
किसको दोषी ठहराऊं अब उस दिन के उस दंश पर।
बैठी थी यूंही तो फ़िर सोशल मीडिया खोल लिया,
कुछ भाव लिए कुछ शब्द लिए, कविता में ही कुछ बोल लिया।
आदेश मंच हुआ कि काव्य संग छवि भी लगानी है,
ज्ञात नहीं था किस किस की मुझ पर यूं निगरानी है।
काव्य सृजन को मान मिले तो मैं भी सबकुछ भूल गई,
पोस्ट कर के कविता अपनी आनंद में झूल गई।
सबने देखी सबने परखी सबने प्रशंसा के पुल गढ़े,
लेखनी पर गर्व किया अरमान अब थे और बढ़े।
न जाने किसने मंचो से मेरी छवि चुराली,
अज्ञात से किसी एप्प में भद्दी सी कर डाली।
धीरे धीरे उसका भी प्रचार हुआ,
घर से बाहर कैसे निकलूं इतना फिर दुर्व्यवहार हुआ।
किसकी है ये भूल कहूं क्या , है कौन गुनाहगार यहां,
मेरी नादानी है गलत या मंच जिसने छवि के लिए कहा।
अनजाने में हुआ अनर्थ कोई क्यूं इसका नुकसान सहे,
मंच कहेगा है स्वयं की गलती, हमनें ऐसे नहीं कहें।
दोष अब लगाने से भी कोई न बात बने,
खुद को दोषी न मानेंगे चाहें कितनी भी ठने।
प्रेरित तो आपसे ही हुई थी लिखने को आपके मंच पर,
रोती हूं अब प्रहर प्रहर मैं आंसू है हर अंश पर।
नर नारी की चेतना का बस अब इतना ध्यान रहें,
लेन देन हो किसी चीज का तो चीज का भी मान रहें।
सही है क्या गलत यहां है इसका कोई तो बोध हो,
किसकी कितनी गलती है इस पर भी कोई शोध हो।
उस दंश का यूं पीर है मन में, जा रही हूं अब आराम को,
अपनी गलती को ठीक करने, चली अनंत विश्राम को ।
मृत्यु ही अब शेष यहां है क्या करेंगे अब इस जीवन का,
दाग गहन है , द्वेष गहन है न भार घटेगा इस मन का।
– अमित पाठक शाकद्वीपी
स्वरचित, मौलिक रचना
#जनहित में जारी
कहीं भी फोटो अपलोड करने से पहले पुरा विचार करें। निजता के नियम का कहीं विरोध न हो।